Last week, I attended one ELT ( Extended Leadership Team ) meeting of my company in Hotel Movenpick, Bangalore near BEL circle. The theme of the meet was "Leadership". Some of my colleagues asked me ( strongly) to recite a poem. I used the theme of the day and penned down a few lines in the form of a poem, on attributes of a Leader.
Here is my impromptu poem that I wrote and recited there.
Here is my impromptu poem that I wrote and recited there.
वक्ता से पहले श्रोता, पर द्रष्टिकोण का ध्यान धरे ।
बन उत्प्रेरक जन मानस का, परिणामों की नींव भरे ।।
कथनी और करनी में जिनके, कोई अन्तर ना पाये ।
दुर्गमता और बीहड्ता में, कभी नहीं जो अकुलाये ।।
मधुर कंठ से शोभित हो जो, ऊर्जा का संचार करे ।
जटिल राह को पट करने हित, आत्मशक्ति का भाव भरे ।।
तीव्र गरम जो रहे स्वयँ पर , परजन पर जो नरम रहे ।
वस्त्र सद्रश हो परोभाव और, धरा सद्रश साहसी रहे ।।
बिन्दु बिन्दु से सिन्धु बना है, ऐसा जो उद्घोश करे ।
मुख्य भूमिका है हर जन की, सब के मन में जोश भरे ।।
कर्मयोग ही महायोग है, कर्मयोग का पाठ करे ।
राह अपरिचित या एकाकी, उस पर भी वो नहीं डरे।।
ध्यान लक्ष्य पर केन्द्रित कर, ले जन मानस को साथ चले ।
बढ़ता जाये कठिन मार्ग पर, कभी नहीं वो मगर टले ।।
By Devendra Singh